Sunday, February 2, 2014

Cooperation Makes A Child Hero Or A Villain - Management Funda - N Raghuraman - 2nd February 2014

सहयोग बनाता है बच्चे को नायक या खलनायक


मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन



यह कहानी दो बच्चों की है। इन बच्चों की उम्र 12 वर्ष थी। दोनों की कल्पनाओं में, इच्छाओं में निशानेबाजी तैरती थी। कुछ वक्त बाद एक अपनी जिंदगी को नायक की तरह जीने में कामयाब रहा। उसे गरीबी के बावजूद परिवार का सहयोग मिला। जबकि दूसरे के पास कोई सहयोग नहीं था। सही वक्त पर सही व्यक्ति से मुलाकात होने के बावजूद वह खलनायक बन गया। 

नायक की कहानी: 


मध्यप्रदेश के मऊ में एक गांव है हरसोला। आर्मी फायरिंग रेंज के पास रहने वाली यहां की एक लड़की वैसे तो आम लड़कियों की तरह ही थी। उसके पिता की आमदनी का जरिया आटो रिक्शा था। फायरिंग रेंज में गूंजने वाली गोलियों की तड़तड़ाहट इस लड़की को बड़ा आकर्षित करती थी। उसकी कल्पनाओं में रायफल और उससे निकलती गोलियां ही तैरा करती थी। लेकिन इस लड़की के लिए वहां तक पहुंचा आसान नहीं था। बेटी की इच्छा जानकर पिता ने उसके लिए रास्ता तैयार किया। जब वह सातवीं क्लास में थी तब उसे एक समर कैंप में हिस्सा लेने का मौका मिला। यह कैंप सेना के बच्चों की टीम के लिये आयोजित किया गया था। कैंप में लगाए अचूक निशानों ने इस लड़की को जूनियर शूटिंग टीम में पहुंचा दिया। यहां उसे अपने हुनर को निखारने के लिये एक हफ्ते की ट्रेनिंग मिली। यह कहानी है अपने जूनून को जिंदा रखने वाली निशानेबाज राजकुमारी राठौड़ की। बीते साल अगस्त में राजकुमारी को अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया गया। यह अवॉर्ड सिर्फ खेल नहीं, बल्कि खिलाड़ी की लीडरशिप, स्पोटर्समैन स्प्रिट और अनुशासन जैसी विशेषताओं के लिए दिया जाता है। राठौड़ मप्र की एकमात्र एकेडमी प्लेयर हैं जिन्हें यह अवॉर्ड मिला है। 

Source: Cooperation Makes A Child Hero Or A Villain - Management Funda by N Raghuraman - Dainik Bhaskar 2nd February 2014

खलनायक की कहानी: 


उसका असली नाम था अहमद सिद्दीबापा। अहमद का जन्म 15 जनवरी 1983 में हुआ था। उत्तरी कर्नाटक के भटकल कस्बे में सिद्दीबापा ने 10वीं तक की पढ़ाई की। सातवीं कक्षा में उसकी उम्र 12 साल थी। इस दौरान उसकी मुलाकात एडिशनल असिस्टेंट पुलिस सुप्रीटेंडेंट से हुई। अहमद ने उस पुलिस अधिकारी से इच्छा जतायी कि वो भी पुलिस अधिकारी बनना चाहता है। उस पुलिस अधिकारी ने बच्चे की इच्छा को उस वक्त जरा भी महत्व नहीं दिया। घटना के 18 साल बाद वह पुलिस, अधिकारी कर्नाटक कैडर में आईजीपी रैंक तक पहुंचा। दूसरी तरफ वही बच्चा 18 साल बाद नवंबर 2005 में देश के सबसे मोस्ट वाटेंड आतंकी के तौर पर उभरा। साल 2005 में अहमद ने अपने घरवालों से कहा कि वह दुबई जा रहा है। उसके बाद से ही वह आतंकी गतिविधियों में शामिल हो गया। उसने कई बार अपने नाम भी बदले। जिनमें शाहरुख खान, यासीन अहमद, इमरान और आसिफ जैसे नाम शामिल हैं। यहां बात हो रही है इंडियन मुजाहिद्दीन के सरगना की। जिसे दुनिया यासीन भटकल के नाम से ज्यादा जानती है। 

बीते हफ्ते यासीन ने पूछताछ के दौरान एक पुलिस अधिकारी को बेहद विचलित कर दिया। तब के एएसपी और आज के पुलिस महानिरीक्षक से भटकल ने कहा सर, क्या आपने मुझे पहचाना ? मैं आपसे भटकल के एक जिम में मिला था। आप एएसपी थे। मैं तब 12 साल का था। मैंने आपसे पुलिस अधिकारी बनने की इच्छा जतायी थी। तब आपने मेरी मदद करने से इनकार कर दिया था। कई आतंकी हमलों के आरोपी और लंबे अरसे तक पुलिस-जांच एजेंसियों की नाक में दम करने वाले यासीन भटकल और उसके भाई रियाज भटकल की कहानी आज हर कोई जानता है।


फंडा यह है कि...

एक बच्चे के अपने ख्वाब होते हैं। यह उनको मिलने वाले सहयोग पर निर्भर करता है कि वह अपने क्षेत्र में नायक बनेंगे या खलनायक।


Cooperation Makes A Child Hero Or A Villain - Motivation Management Funda - N Raghuraman




































Source: Cooperation Makes A Child Hero Or A Villain - Management Funda by N Raghuraman - Dainik Bhaskar 2nd February 2014

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