Friday, November 8, 2013

More Than The Contact, Dialogue Is Filled With Emotions and Humanity - Management Funda - N Raghuraman - 8th November 2013

संपर्क से ज्यादा मानवीय और भावनाओं से भरा है संवाद

मैनेजमेंट फंडा - एन. रघुरामन

 
इस साल दिवाली पर मेरे घर काफी लोग आए। इतने सारे लोगों को देखकर काफी आनंद आया। खास मौकों पर आने वाले लोग मुझसे बात करना चाहते थे। जबकि जो लोग आते रहते हैं वे आंखों के इशारों से ही संदेश ले और दे रहे थे। लेकिन उनकी अंगुलियां फोन पर नाच रही थीं। शायद वे उसमें संदेश भेजने व आए संदेशों के जवाब देने में व्यस्त थे। जरा सोचिए। छोटी सी चीज (मोबाइल) जो हम सबके पास है, कितनी ताकतवर है। इसने हमें कितना बदल दिया है। इसके मार्फत अब हम एक नए चलन के अभ्यस्त हो गए हैं। ‘अकेले होकर भी सबके साथ रहने का चलन।’ तकनीक ने हमें इतना सक्षम बना दिया है कि हम कभी भी, कहीं भी, किसी से भी जुड़े रहे सकते हैं। 

Source: More Than The Contact, Dialogue Is Filled With Emotions and Humanity - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 8th November 2013
हम अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहते हैं। हम जहां हैं वहां से अपनी मर्जी से अंदर या बाहर होना चाहते हैं। शायद इसी इच्छा ने हमें तकनीक पर निर्भर कर दिया है। यही वह चीज भी है जिसकी वजह ये इन दिनों युवा वर्ग को जहां-तहां कानों में ईयरफोन लगाए देखा जा सकता है। चाहे वे सड़क के किनारे चल रहे हों। लाइब्रेरी में हों या अपना कोई दूसरा काम कर रहे हों। हर जगह यही नजारा आम है। हाल में ही मैं जर्मन की एक कंपनी के ऑफिस में गया। इस कंपनी में मेरी बेटी इंटर्नशिप (काम का शुरुआती प्रशिक्षण) कर रही है। और जगहों की तरह वहां भी देखा कि 20 से 28 साल की उम्र के सभी युवा तरह-तरह के उपकरणों में उलझे थे। कोई लैपटॉप तो कोई आईपॉड या आईपैड पर। किसी के पास नई पीढ़ी के ढेरों फोन। और एक चीज लगभग सभी में कॉमन। ईयरफोन। किसी-किसी का ईयरफोन तो इतना बड़ा जैसा कि पायलट विमान के कॉकपिट में इस्तेमाल करता है। एक तरह से इन लोगों ने अपने कामकाज की जगह को विमान के कॉकपिट में ही तो तब्दील कर दिया है। पायलट की तरह उनकी नजरें सामने स्क्रीन पर होती हैं। और इयरफोन के जरिए वे किसी न किसी से बात में उलझे रहते हैं। बातचीत काम से संबंधित हो या निजी मसले से, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वैसे किसी ऑफिस में पहली बार मैंने इतनी अधिक संख्या में युवाओं को देखा। वह भी पूरी तरह शांत। लेकिन यह शांति ऐसी थी जो खुद गुहार कर रही थी कि उसे किसी तरह तोड़ा जाए।

मैं कुछ दूरी पर खड़ा होकर ऑफिस का नजारा देख रहा था। इसलिए नहीं कि मुझे युवाओं को देखने में दिलचस्पी थी। बल्कि इसलिए कि मैं नई पीढ़ी के काम करने का तौर-तरीका समझने की कोशिश कर रहा था। संपर्क और संबंधों की यह शांति अजीब है। लोग बेहद सावधानी से खुद किनारे पर खड़े होकर ढेरों लोगों से जुड़े हुए है। यह जुड़ाव इस तरह का है जिसे हम कह सकते हैं कि न ज्यादा दूर न पास। न ज्यादा, न कम। बिल्कुल ठीक। इस संबंध और संपर्क को जब चाहो तब संपादित कर लो। यानी काट-छांट कर लो और जब चाहो तब डिलीट यानी खत्म। मानव संबंध बहुत समृद्ध हैं। वे अस्तव्यस्त और कभी तृप्त न होने वाले होते हैं। हमने तकनीक के जरिए उन्हें साफ करना सीखा है। संवाद से संपर्क की ओर शिफ्ट होने की यह प्रक्रिया इसी का हिस्सा है। लेकिन इस प्रक्रिया में हम काफी बदल गए हैं। इसका सबसे बुरा पहलू ये है कि हमने अब एक-दूसरे की कद्र करना छोड़ दिया है। हम भूल गए हैं कि आपस में मतभेद होना आम बात है। संवाद जब आमने-सामने होता है तो यह हमें धर्य रखना सिखाता है। लेकिन जब हम डिजिटल डिवाइस के जरिए बातचीत करते हैं तो कुछ दूसरी आदतें हममें पड़ जाती हैं। उदाहरण के लिए हम हर किसी से बहुत जल्दी जवाब की अपेक्षा करने लगते हैं। इसे हासिल करने के लिए जल्दी-जल्दी और आसान से सवाल पूछते जाते हैं। कभी-कभी तो हम बीच में किसी अहम मसले पर बातचीत को अचानक रोक देते हैं। क्या यह अच्छा कहा जा सकता है..?


फंडा यह है कि..


संपर्क और संवाद के बीच हमें ध्यान रखना चाहिए कि संपर्क कभी संवाद से आगे न निकल पाए, क्योंकि संवाद अधिक मानवीय और भावनाओं से भरा हुआ है।










Source: More Than The Contact, Dialogue Is Filled With Emotions and Humanity - Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 8th November 2013

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