Friday, October 18, 2013

Problem Solving Is Possible - Management Funda - N Raghuraman - 18th October 2013

मौसम का पूर्वानुमान देने वालों को 29 अक्टूबर 1999 में अपना चेहरा छिपाने की जगह नहीं मिल रही थी। उस वक्त देश के पूर्वी तट पर आए तूफान को लेकर उनके सारे पूर्वानुमान गलत साबित हुए थे। करीब 12 घंटे पहले इस तूफान के बारे में बताया गया था कि हवाएं 200 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलेंगी। लिहाजा तब की ओडिशा सरकार ने तूफान को लेकर ज्यादा गंभीरता नहीं दिखाई, क्योंकि इतनी तीव्रता के तूफान वहां आते रहते हैं। लेकिन तूफान अनुमान से कहीं अधिक भयानक निकला। इसका नतीजा ये हुआ कि 9,885 लोगों को जिंदगी से हाथ धोना पड़ा। तूफान के कारण कई जगह भारी बारिश हुई। ओडिशा के 14 तटीय जिलों में करीब 45 से 95 सेंटीमीटर तक। इससे बाढ़ की स्थिति बन गई और भारी धन हानि भी हुई। पिछले हफ्ते करीब 14 साल बाद फिर पूर्वी तट को एक और तूफान पाइलिन ने झकझोरा। लेकिन मरने वालों की तादाद महज 36 रही। हालांकि मौत कितनी भी हो, बुरी ही होती है। लेकिन इतने बड़े तूफान के बावजूद यह आंकड़ा इस बात का सबूत है कि पहले की तुलना में अब हालात सुधर गए हैं। तूफान से बचाव के लिए वर्तमान ओडिशा सरकार ने जो बंदोबस्त किया था वह काबिले तारीफ है। 
 
  Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 18th October 2013
अब इन दोनों केस की तुलना करते हैं। इस बार तूफान से जुड़ी चेतावनी दिए जाने की व्यवस्था बेहतर थी। वैज्ञानिक तौर-तरीकों से तकनीशियन तूफान के मूवमेंट पर हर पल नजर रखे हुए थे। प्रशासन भी चुस्त था। उसने समय रहते तटीय इलाकों के करीब नौ लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा दिया। धनहानि का ठीक-ठीक आकलन अभी होना है। तूफान के आकार और तीव्रता की बात करें तो 1999 में इसकी भयावहता का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि समुद्र की लहरों ने 40 से 50 किलोमीटर की तटीय जमीन निगल ली थी। लहरें सात से 10 मीटर तक ऊपर उठी थीं। केंद्रपाड़ा और बालासोर जैसे कुछ जिलों में ज्यादा खराब हालात थे। हवाएं भी 200 किमी के बजाय कहीं ज्यादा तीव्रता से चली थीं। इसकी तुलना में पाइलिन कम भयावह था। इसकी हवाओं की औसत गति 200 किलोमीटर प्रतिघंटा ही थी। इसलिए समुद्र की लहरें सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में भी तीन मीटर से ज्यादा ऊंची नहीं उठीं। दोनों तूफानों के मामले में एक और बड़ा फर्क है। इसका सामना करने के तौर-तरीकों का।

राज्य में 1999 में गिरधर गमांग के नेतृत्व वाली सरकार थी। तूफान की भयावहता देख गमांग सरकार का पूरा प्रशासनिक ढांचा एकबारगी तो बेहोश सा हो गया था। जिस वक्त सबसे ज्यादा जरूरत थी तब कुछ नहीं किया गया। सब कुछ ठहर सा गया था। यहां तक राहत सामग्री के ट्रक भी जहां थे वहीं खड़े रहे। और जब वे प्रभावित इलाकों में पहुंचे तो लूट लिए गए। जबकि इस दफा नवीन पटनायक की सरकार ने पिछले अनुभवों का भरपूर इस्तेमाल किया। उनसे सीखा और उनके मुताबिक समय रहते पहले ही कदम उठा लिए। बेहतर तकनीक, कमांड और कंट्रोल, चुस्त प्रशासन ने पाइलिन का सामना ज्यादा प्रभावी तरीके से किया। इससे नुकसान को जितना कम किया जा सकता था, किया गया। प्रभावित लोगों तक राहत सामग्री न पहुंचने की शिकायतें भी इस बार न के बराबर ही आईं। मतलब इस बार पाइलिन का जिस तरह से सामना किया गया वह देश में अपवाद ही है। हालांकि हम सब उम्मीद करते हैं कि प्राकृतिक आपदाओं के मामले में भविष्य में इस तरह के इंतजामात बार-बार देखने मिलें। जब भी ऐसा कोई मौका आए तो हर कोई, हर चीज काम करे। ताकि नुकसान को कम से कम किया जा सके। खासकर, जिंदगी का, जो अपने देश में वैसे भी बहुत सस्ती है।

फंडा यह है कि..

जब हर चीज और हर कोई काम करता है तो नतीजे तारीफ के काबिल होते हैं। अगर पाइलिन का सामना करने के तौर-तरीकों को आपदा प्रबंधन के लिए भविष्य का संकेत मान लें तो हमें खुद को बधाई देना चाहिए
















 Source: Management Funda By N Raghuraman - Dainik Bhaskar 18th October 2013

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